अज्ञता अछि विपत्तिक जड़ि,
अहंता जड़िसँ नशाबय ।
ज्ञान सबसँ पैघ नौका,
पार भवसागर लगाबय ।।
पार भवसागर लगाबय,
वित्त क्षय किछु ने बिगाड़य ।
चरित्रक बल उन्नतिक जड़ि,
आत्मबल सभतरि उबाड़य ।।
गुरु थिका निज आतमा आ
मौन थिक सद्शिष्यता ।
मोन आत्मविलीन होइतहिं,
पड़ायत सब अज्ञता ।।
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