अपने जिनक स्वागत करब,
से घुरिक' अयता फेरसँ ।
उपेक्षा जिनकर करब, से
घुरि ने अयता फेरसँ ।।
घुरि ने अयता फेरसँ,तएँ-
अवज्ञा नै करी ककरो ।
अनेरे आयल करत से,
कहाँ फुरसति छैक ककरो ।।
आबिक' हरि घुरि जेता,
नै जानि केहनो भेष धयने ।
घुरि ने अयता फेर सँ ओ,
लाख पटकब माथ अपने ।।
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