सीखी साइकिल तही दिशामे,
जही दिशा गन्तव्य अभीप्सित ।
जँ सीखब विपरीत दिशा तँ,
लक्ष्य असंभव आर अनिश्चित ।।
लक्ष्य असंभव आर अनिश्चित,
शून्ये पर पुनि लौटिक' आयब ।
फेरो उल्टा चल' पड़त तँ,
जिनगी भरि बहुते पछतायब ।।
तैं तेहने अभ्यास करी नित,
स्रोते पर अँटकब सब सीखी ।
होयत सार्थक तखन परिश्रम,
प्रगतिक मंत्र यैह सब सीखी ।।
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