Saturday, July 8, 2023

अहंता अज्ञानता थिकि ।

अहंता अज्ञानता थिकि, बुद्धि के छथि नाशकर्त्री I क्रोध, मोहक जन्मदात्री, विवेकक अपहरणकर्त्री II विवेकक अपहरणकर्त्री, मनुजता के मृत्युदात्री I दोख दुर्गुण वृद्धिकर्त्री, मनुख के गर्तक प्रदात्री II गुमानक करु त्याग, सुन्दर- देह एकदिन जाय जरता, चिता भूमिक करी दर्शन, जखन क' आबय अहंता II मानू नै संबंध टूटत, जँ अहं-बीया ने जनमत । फ़सल संबंधोक उपटत, जँ गुमानक ख'ढ़ पनपत ।। जँ गुमानक ख'ढ़ पनपत, दहिन मे उधियाय लागत । काल के गति क्यो ने जानय, क्षणे मे भसियाय जायत ।। बाम दिन मे सब्र राखू, दहिन मे छाती ने तानू ।। प्रेम सबदिन रहय उर मे, क्षमा के ब्रह्मास्त्र मानू ।। ----------------........----------------

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