Saturday, July 15, 2023

माया आओर ज्ञान

जे कियो दौड़ैत रहता मायाक पाछाँ, से ने कहियो किमपि ओकरा पकड़ि सकता । रहत लागल तनिक पाछाँ छाया हुनक, चलब जे कियो सूर्य दिस प्रारम्भ करता ।। सुधीगण! संसार दिस नै भागल करू तएँ, होउ उन्मुख जिज्ञासुगण! निज स्रोत रवि दिस । तनिक पाछाँ रहत लागल संसार(सुख, समृद्धि) अपनहि, चलब जे प्रारंभ करता ज्ञान(सूर्य, प्रकाश) दिस ।।

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