जे कियो दौड़ैत रहता
मायाक पाछाँ,
से ने कहियो किमपि
ओकरा पकड़ि सकता ।
रहत लागल तनिक पाछाँ
छाया हुनक,
चलब जे कियो सूर्य दिस
प्रारम्भ करता ।।
सुधीगण! संसार दिस नै
भागल करू तएँ,
होउ उन्मुख जिज्ञासुगण!
निज स्रोत रवि दिस ।
तनिक पाछाँ रहत लागल
संसार(सुख, समृद्धि) अपनहि,
चलब जे प्रारंभ करता
ज्ञान(सूर्य, प्रकाश) दिस ।।
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