भले हो प्रतिकूलता,
अनुकूल ओ तकरा बनायत ।
ठाइन लेलक जँ मनुख तँ,
किछु ने किछु क' क' देखायत ।।
किछु ने किछु क' क' देखायत,
श्रेष्ठता नहि जन्म सँ हो ।
निपुणता आ श्रेष्ठता गुण आ
कला, निज कर्म सँ हो ।।
दूध डाढ़ी दही मक्खन
घृतादिक गुण होइछ अलगे ।
दाम भिन्ने रहय सबहक,
सब एकहि कुल के भले ।।
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