Tuesday, June 20, 2023

आत्मस्थताक आनंद

धाह कतबा सहथि रवि के कहि सकत ? स्वयं जरिक' प्रकाशित जग के करत? भ' सकय उपकार नहि बिनु कष्ट सहने, दीप तम भगबय जखन अपने जरत ।। प्रशव-पीड़ा माय केर के बुझि सकत ? गलाक' निज देह सर्जन के करत? भूखके पीड़ाक की अनुभव हो तकरा? स्वर्ण चम्मच मुखमे जे जनमल रहत ।। मरु-तृषित मृग देखितहि- जल मुदित कतबा? के विरहिणी प्रियमिलन सुख नापि सकता? प्रथम बरखा-बुंद टा चाहैछ चातक, के चकोरी-चन्द्रके उर थाहि सकता?? जे ने चिखलक, स्वाद- मिसरिक की कहत? स्वादियो वरनब मिठासक के सकत ? आत्मस्थित सुखक हो आनंद अनुपम, हृदय सुस्थित भेनहि अनुभव भ' सकत!!! ***********************??***** *************************

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