बात-ज्ञानक डाङ बिपतिक
धैर्ज ध' क' सहू प्रतिदिन ।
जखन घूरत नीक दिन तँ,
भाग जागत अहुँक एकदिन ।।
भाग जागत अहुँक एकदिन,
मौन मुख के सतत राखू ।
स्नेह हो सकले जगत सँ,
नहि अनर्गल वचन भाखू ।।
मात्र ईशक आश, कहियो-
बिसरियो नहि आश आनक ।
यैह थिक भाखथि 'कमलजी'
पैघ सबसँ बात-ज्ञानक ।।
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