करय जग मे नाम से जे,
कसिक' जड़ि धेने रहय ।
डीह-डाबर के ने बिसरय,
चाकरी कत्तहु करय ।।
चाकरी कत्तहु करय,
निर्भय रहय मजगूत जड़िजँ ।
डाइर-पल्लब-फूल-फल,
सब पुष्ट हो मजगूत जड़िसँ ।।
जकर जड़ि हो गहींर जतबे,
से तते ऊपर बढ़य ।
घात अन्हर-बिहाड़िक,
पाथरो किछु ने करय ।।
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