साधु लग गेले सँ भेटय-
शान्ति मोनक बिना मँगनहिं ।
सेंट बिक्रेता सुवासित-
करय परिसर बिना किननहिं ।।
सरित बिन मंगनहिं प्रदानथि-
वारि, जखनहिं ल'ग जायब ।
ल'ग सद्वृक्षक गेलहिं सँ,
बिना मंगनहिं फ़'ल पायब ।।
बर्फ के नजदीक गेनहिं,
महाशीतलता भेटै अछि ।
अग्नि लग मे जाइत देरी,
लोक गरमाहटि पबै अछि ।।
प्राणवायुक दान अपनहिं-
करै छथि सदिखन पवन ।
लोक के कल्याण खातिर,
धरणि अपनहिं दैछ अन्न ।।
ईश सँ किछुओ ने माँगू,
निकट गेनहिं भेटय सब किछु ।
करू निज कर्तव्य, सबसँ-
प्रेम केनहिं, भेटय सब किछु ।।
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