Tuesday, August 8, 2023

आंतरिक शत्रु थिक असली शत्रु

क्यो ने ककरो मित्र आ ने शत्रु जन्मे सँ रहय । स्वयं के व्यवहार सँ क्यो दोस्त वा दुश्मन बनय ।। आंतरिक अछि शत्रु असली बाह्य रिपु के किछु ने मोजर । क्रोध घिरना लोभ लालच काम मोहे होइछ जोरगर ।। एके ईश्वर सभक उरमे आन क्यो नहि रहय जगमे । स्वयं सँ के करत घिरना प्रेम सबसँ रहय जगमे ।। दोष अप्पन क्यो लखय नहि मनुखमे बड़का अगुण अछि । अपन दोषो के ओ अनके माथ मढ़बा मे निपुण अछि ।। अपन जीवन के दुखी- त्रासद स्वयं अपने बनाबी । शत्रु हम्मर दोष अपनहि, नाम हम अनकर लगाबी ।। सब जँ अप्पन अवगुणे लखि, मेटाब' मे लागि जायत । गुणे अनकर जँ देखय तँ, स्वर्ग धरणी के बनायत ।। स्वर्ग धरणी के बनायत!!! ***************************

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