लट्टू जुनि होथु कियो,
लखि बाह्य सौंदर्य टा ।
नहि खोलय भीतरक भेद,
दैहिक सौंदर्य टा ।।
दुष्टो सब शुभ्र-शाभ्र,
चेला अछि मूड़ि रहल ।
ओढ़िक' साधुक खोल,
भेड़िया सब घूमि रहल ।।
मोर बड्ड सुन्दर अछि,
नाचय सेहो खूब सुन्दर ।
गहुमन के खाइछ खूब,
भरल छैक जहरि अन्दर ।। ।।
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