Thursday, August 17, 2023

आन्तरिक सौंदर्य

लट्टू जुनि होथु कियो, लखि बाह्य सौंदर्य टा । नहि खोलय भीतरक भेद, दैहिक सौंदर्य टा ।। दुष्टो सब शुभ्र-शाभ्र, चेला अछि मूड़ि रहल । ओढ़िक' साधुक खोल, भेड़िया सब घूमि रहल ।। मोर बड्ड सुन्दर अछि, नाचय सेहो खूब सुन्दर । गहुमन के खाइछ खूब, भरल छैक जहरि अन्दर ।। ।।

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