सर्वोच्चता हो विचारक,
क्रिया के प्रतिबद्धता ।
ततहिं हो श्री जय विभूति,
सुनीतिक हो शास्वता ।।
सुनीतिक हो शास्वता,
हरिनाम पापक नाशकर्ता ।
स्मरण हर्षक प्रदाता,
ओ थिका त्रय तापहर्ता ।।
प्राप्ति हो सद्ज्ञान के,
आ नष्ट हो सब अज्ञता ।
सकल संशय दूर हो,
आ प्राप्त हो सर्वोच्चता ।।
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