गन्दगी सँ जगतमे
घिरना देखाबथि सकल जन,
तेल साबुन लगा इत्रें
सुवासित राखथि अपन तन ।
बाह्य यद्यपि स्वच्छ, पर-
अन्तर हुनक कालिख भरल,
किअए ने सत्येक साबुन
लगा राखथि स्वच्छ मन ।।
अध्यात्म के आधार जगमे
स्वच्छ मोने टा रहथि ।
यएह तरणी होइछ जै सँ
मनुज भवसागर तरथि।
यएह बाहर जाय क'
संसार के सर्जन करथि,
स्रोत पर सुस्थिर भेने तँ
स्वयं ई आत्मा बनथि ।।
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