सबठाँ धृतराष्ट्रे भरल,
न्यायक ने छुइत अछि ।
भीष्म द्रोणों मौन धएने,
दुर्योधनक जुइत अछि ।।
दुर्योधनक जुइत अछि,
कुशासने चीर हरलक ।
कोना लाज बाँचत,
प्रशासने स्वांग रचलक ।।
युवा-भीम उठू झट,
पिशाचे पसरल सबठाँ ।
चीरू छाती ओकर,
दुशासने सबल सबठाँ ।।
------कमलजी------
*************************
No comments:
Post a Comment