खाली राखब मोन तँ,
भरि जायत शैतान ।
जँ ने रोपल खेत के,
घास-फूस खरिहान ।।
घास-फूस खरिहान,
करी नीके नित चिन्तन ।
व्यर्थ ने मन हो खिन्न,
रही हँसिते सब अनुखन ।।
नीके राखी सोच,
नकारा के जुनि पाली ।
चिन्तन नित अध्यात्म,
मोन नहि कखनो खाली ।
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