Wednesday, August 16, 2023

दृश् प्रपंचक मूल ईशे

दृश् प्रपंचक मूल ईशे, वैह जगतक सकल कर्ता । स्रोत ओ आनन्द के छथि, वैह तँ छथि विघ्न-हर्ता ।। अपना बसमे किछु ने ककरो, झूठ-मूठके गुड़िया गाँथय । जीव सकल कठपुतली जगमे, जेना नचाबथि तहिना नाचय ।। जेना ट्रेनमे चढ़िते देरी, माथक मोटरी सेहो रखै छी । सबटा भार दियनु हुनके पर, व्यर्थक चिन्ता किए करै छी । बहुत प्रबल अछि गाल काल केर, सबके एकदिन निश्चय खायत । ईशक हाथ जनिक माथा पर, कालक भय के दूर भगायत ।। *******************************

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