दृश् प्रपंचक मूल ईशे,
वैह जगतक सकल कर्ता ।
स्रोत ओ आनन्द के छथि,
वैह तँ छथि विघ्न-हर्ता ।।
अपना बसमे किछु ने ककरो,
झूठ-मूठके गुड़िया गाँथय ।
जीव सकल कठपुतली जगमे,
जेना नचाबथि तहिना नाचय ।।
जेना ट्रेनमे चढ़िते देरी,
माथक मोटरी सेहो रखै छी ।
सबटा भार दियनु हुनके पर,
व्यर्थक चिन्ता किए करै छी ।
बहुत प्रबल अछि गाल काल केर,
सबके एकदिन निश्चय खायत ।
ईशक हाथ जनिक माथा पर,
कालक भय के दूर भगायत ।।
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