Thursday, March 11, 2021

कटि रहल अछि गाछ सौंसे

कटि रहल अछि गाछ सौंसे,

भू-क्षरण अछि भ' रहल ।

वायु के धूआँ आ गर्दें,

प्रदूषित सब क' रहल ।।


प्रकृति संग व्यवहार अनुचित,

लोक निश-दिन क' रहल ।

जेहन करनी तेहन प्रतिफल,

ओहो बदला ल' रहल ।।


ग्रीष्म धधकाबय जगत के,

धाह स' जिबिते जराबय ।

जाड़ भेल निर्मोह, जीवक-

हड्डियो तक के गलाबय ।।


कतहु अतिशय वृष्टि, दाही-

घ'र आँगन तक दहाबय ।

कतहु होमय महारौदी,

जजातो सबके जराबय ।।


प्रदूषित पर्यावरण अछि,

श्वास दुर्लभ भ' रहल ।

अपन किरदानी स' मानव,

प्राण अपनहि ल' रहल ।।


पठाक' भुवकम्प तांडव-

प्रकृति कुपितें क' रहलि ।

ढाहिक' असमय हिमनद

जान सबके ल' रहलि ।।


वृक्ष के रोपबाक जँ

सब लोक के संकल्प होमय,

फलें पुष्पें भरय धरणी,

प्रदूषण अत्यल्प होमय ।।


गाछ-बिरिछक वृद्धिएँ

सब जीव-जंतुक हएत रक्षण ।

सैह हो पूजा प्रकृति केर,

बनत धरणी अति विलक्षण ।।

************************

No comments:

Post a Comment