Thursday, March 11, 2021

मिट्ठ बाजक गुर

 शिष्य अछि क्रोधी स्वभावक

गुरुक सम्मुख आबि बाजल-

"क्रोध हमरा सतत आबय

बना दैछ निछच्छ पागल ।।


गुरु! अहँक व्यवहार उत्तम,

सतत मिट्ठे टा बजै छी ।

क्रोध जितने छी, ने कखनो-

कटु वचन ककरो कहै छी ।।


हमर भाग्यक रेख की अछि?

कृपा क' क' ई बतबितहुँ ।

संगहि अप्पन क्रोध जितबा

के रहस सेहो सुनबितहुँ ।।"


संत-"अद्याबधि ने अप्पन,

रहस किछुओ हम जनै छी ।

मुदा तोहर भाग्यरेखा-

के रहस सबटा जनै छी ।।"


-"अहँक शरणागत छी गुरुवर!

चरण-रज सँ सब सिखल ।

कृपा क' क' बता दीतहुँ,

भागमे अछि की लिखल?"


-"लिलाटक रेखा कहै छौ,

आब बेसी दिन ने बचबैं ।

यैह लीखल छौ जे साते

दिनमे तों प्रस्थान करबैं ।।"


आन जँ ई बात कहितै,

शिष्य हँसिकय टालि दीतय ।

मुदा गुरुमुख बात, हिम्मति-

भेलै नहि जे काटि सकितय?


गुरु चरण स्पर्श क' क',

शिष्य मुँह लटका क' चलि गेल ।

ताहि दिन सँ शिष्य केर-

व्यवहार साफे क' बदलि गेल ।।


प्रेम सबसँ करय, नहिएँ-

क्रोध ककरो पर करै छल ।

भजन-पूजा-पाठ ध्यानेमे 

सतत लागल रहै छल ।।


पूर्वमे व्यवहार उल्टा-

केने छल जिनका संगें ।

माँगि माफी करय लागल-

प्रेम ओ तिनका संगें ।।


एलै सातम दिवस तँ ओ-

गुरुक सोझाँ जाय बाजल-

"क्षमा गुरु! आशीष दीय',

देह तजबा समय आयल ।।"


 -"पुत्र! बाजह सात दिन के-

कोन विधि सँ तों बितेलह?

की तों पूर्वे जेकाँ सबपर,

खूब तामस के देखेलह?"


-"गानि-गुथिक' सात टा दिन,

शेष जिनगी केर पाओल ।

पाठ-पूजे-ध्यान-प्रेमें,

डूबिक' तकरा बिताओल ।।


कष्ट देने छलहुँ उरमे

पूर्वमे जकरा सभक हम ।

क्षमा सबसँ माँगि अयलहुँ 

गेह जा तकरा सभक हम ।।"


-"बूझि गेलह मर्म सबटा,

मृदुल व्यवहारक हमर ।

सात दिन सप्ताहमे अछि,

तहीमे सबक्यो मरत ।।"


शिष्य गुरु-संकेत बुझि गेल,

ताप मोनक मे'टि गे'लै ।

मृत्युभय तँ छल बहन्ना,

सार-जिनगिक भे'टि गे'लै ।।

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