जे बीति गेल तकरा बिसरू,
आ आगाँ के आबाद करू ।
लौटय ने कहियो भूतकाल,
तँ वक्त किऐ बरबाद करू!!
सब वर्त्तमान मे अगर जीब,
सुन्दर भविष्य होयत नसीब ।
तैं वर्तमान के ठोस करू,
भ' जायत ठोसगर स्वयं नीब ।।
अछि सादा पन्ना भविष् साथ,
पकड़ू कागत आ कलम हाथ ।
लीखू स्वर्णाक्षर वर्तमान,
जै सँ जिनगी भ' जै सनाथ ।।
सब भूतकाल मे नित्य मरथि,
चिन्ता सबदिन भविषेक करथि ।
नहि वर्तमान मे क्यो जीबथि,
व्यर्थहिं चिन्तित बेचैन रहथि ।।
की हएत भविष् से नहि जानी,
भूते चिन्तनरत अज्ञानी ।
सोझाँ अछि सबहक वर्तमान,
ताही मे जीबथि विज्ञानी ।।
अछि बकसि देलक मम पिंड भूत,
बाँचल टा अछि उज्ज्वल भविष्य ।
जँ सँवरि गेल मम वर्तमान,
तँ भूत संगहिं सँवरत भविष्य ।।
तँ भूत संगहिं सँवरत भविष्य!!!
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