Thursday, March 11, 2021

जे बीति गेल तकरा बिसरू

 जे बीति गेल तकरा बिसरू,

आ आगाँ के आबाद करू ।

लौटय ने कहियो भूतकाल,

तँ वक्त किऐ बरबाद करू!!


सब वर्त्तमान मे अगर जीब,

सुन्दर भविष्य होयत नसीब ।

तैं वर्तमान के ठोस करू,

भ' जायत ठोसगर स्वयं नीब ।।


अछि सादा पन्ना भविष् साथ,

पकड़ू कागत आ कलम हाथ ।

लीखू स्वर्णाक्षर वर्तमान,

जै सँ जिनगी भ' जै सनाथ ।।


सब भूतकाल मे नित्य मरथि,

चिन्ता सबदिन भविषेक करथि ।

नहि वर्तमान मे क्यो जीबथि,

व्यर्थहिं चिन्तित बेचैन रहथि ।।


की हएत भविष् से नहि जानी,

भूते चिन्तनरत अज्ञानी ।

सोझाँ अछि सबहक वर्तमान,

ताही मे जीबथि विज्ञानी ।।


अछि बकसि देलक मम पिंड भूत,

बाँचल टा अछि उज्ज्वल भविष्य ।

जँ सँवरि गेल मम वर्तमान,

तँ भूत संगहिं सँवरत भविष्य ।।

तँ भूत संगहिं सँवरत भविष्य!!!

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