समय बहुत बलवान
सबदिन लोक बजै अछि ।
लाखपति जँ दहिन, बाम-
तँ खाक करै अछि ।।
अतिथि थिका सुख-दुःख
आबथि आर पड़ाइथ ।
अविचल जे दूहू मे
असली वीर कहाइथ ।।
अपूर्णे जिनगी तनिक
दूहूँक जे अनुभव ने केलनि ।
से थिका लप्पा-छहरिया
बोझ पिरथी के बढेलनि ।।
समय हुनके नीक जे
अधलाह ककरो ने सोचथि ।
सतत जे सद्कर्म मे रत
अलिप्तेँ धरणी के भोगथि ।।
समय हुनके नीक, पर-
उपकार मे जे रहथि पागल ।
काव्य-शास्त्रक विनोदे मे
सद्पुरुष से रहथि लागल ।।
समय अछि अधलाह तिनकर
सतत व्यसने मे जे लागल ।
कलह, निद्रा मे डुबल जे
बोझ भू पर से अभागल ।।
व्यर्थ नै जिनगी गमाबी
सूर्य सेहो देखू ढलि गेल ।
अकारथ मे अमुल जीवन
केर एक दिन फेर चलि गेल ।।
अकारथ.......... !!!!!
*********कमलजी*********
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