नेत्र करुणें हो भरल,
श्रद्धा नमित मम माथ हो ।
पैर सन्मार्गे चलय,
सहयोग रत दुहुँ हाथ हो ।।
मधुर वाणी मुख सँ निकलय,
जीह सद्भाषण करय ।
श्रोत्र हरिनामक श्रवण, चित-
ध्यान मे लागल रहय ।।
हाल जे पूछय अहाँके,
स्वार्थ नै सदिखन रहय ।
अहाँसँ छै स्नेह अतिशय,
खोज तैं सदिखन करय ।।
ईश के किरपें सँ किछु जन,
अहँक जिनगी मे अबै छथि ।
अमुल नैसर्गिक वचन सँ,
भाग्य के से बदलि दै छथि ।।
श्रेष्ठजन के छत्र-छाँही,
माथ पर नहि बोझ बूझू ।
ओ सुरक्षा-कवच हम्मर,
अनिष्टक अवरोध बूझू ।।
यत्न सँ तै देवता के,
जोगाक' राखल करी ।
तनिक सेवा करी श्रद्धे,
जियाक' राखल करी ।।
जियाक' राखल करी!!!!
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