कियै ब्याकुल रहै अछि क्यो,
पूर्ण रूपे जँ समर्पण ।
कथी के चिन्ता करै छी,
क' दियनु सर्वस्व अर्पण ।।
भक्ति मार्गक खूब चर्चा
लोकसब निशदिन करै अछि ।
बात त्यागक जँ करब तँ
नहि समर्पण क' सकै अछि ।।
लोक माया आर ईश्वर
एके संग दूनू के चाहथि ।
व्यर्थमे पागल बनल नित
माथ पर चिन्ता के लादथि ।।
सतत माँगक लेल केवल
पत्र-पुष्पो के चढाबथि ।
पूर्णतः विश्वास नै तैं
चैन सँ रहियो ने पाबथि ।।
सकल रचना हुनक जँ छनि,
कियै आकुल रहै अछि क्यो!
जे देलनि मुख भार तिनके
कियै ब्याकुल रहै अछि क्यो !!
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