Thursday, February 1, 2024
नारियल सम बाह्य दृढ़तम
नीक
*********
नीक तकरे बुझी जे
निन्दा ने अनकर करय कहियो ।
जदपि अप्पन त्रूटि लघुतम
खेदके प्रगटैछ तइयो ।।
पैघ गलतीयो जँ अनकर
माफ ओ क' दैछ सदिखन ।
मदति अनकर करक, ताकथि-
सुअवसर छोटो ओ सदिखन ।।
मदति यद्यपि करथि, पर-
एहसान नै कहियो जनाबथि ।
जरथि नै अनकर खुशी सँ
जश्न हिरदय सँ मनाबथि ।।
बूझि अनकर भावना, नै-
किमपि ककरो पर हँसै छथि ।
बात अनकर हृदयके
महसूस निज उरमे करै छथि ।।
अपन हृदयक ध्वनिक ओ
आदर सेहो सदिखन करै छथि ।
सत्यके संग देथि आ
बलवान झूठो सँ लड़ै छथि ।।
लेख कविता चित्रकारी
गीत-संगीतोमे रुचि छन्हि ।
सकारात्मक काजमे रत
व्यसन सँ अतिशय अरुचि छन्हि ।।
आत्मविश्वासे भरल आ
बाह्य-अंदर एक छथि,
नीक श्रोता प्रखर वक्ता
नम्र आ किरतज्ञ छथि ।।
प्रकृतिप्रेमी जीवप्रेमी
अहिंसक अतिशय सरल,
नारियल सम बाह्य दृढ़तम
हृदय करुणा सँ भरल ।।
***************************
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment