क्षणिक स्वार्थक लेल जे क्यो
दैत छथि तकलीफ अनका ।
लाभ सांसारिक भले हो,
पारमार्थिक हानि तिनका ।।
खूब उत्साहें मनाबी, छोट
खुशियोके सुअवसर ।
यएह सम्बल जीवनक थिक,
कत' ताकब दीर्घ अवसर ।।
अंत नै तृष्णाक अछि,
संतोषके सुख होइछ उत्तम ।।
भेटल जे प्रारब्धसँ, अछि-
सैह सबहक लेल उत्तम ।।
अहंता शैतान थिक जे
बनाबय दानव मनुजके ।
नम्रता ब्रह्मास्त्र, बनबय-
जे महामानव मनुजके ।।
भले कतबो हो मतान्तर,
मर्मके भेदब उचित नहि ।
पड़त गिठ्ठ', बादमे-
लौटब त' कहियो मिटि सकत नहि ।।
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