ध्यान दी मजगूत डोरी-
प्रेम के नहिं टूटि पाबय ।
नहिं जुटय, गिट्ठ' पड़य,
जँ फेर सँ ओ जूटि पाबय ।।
जँ फेर सँ ओ जूटि पाबय,
स्नेह सँ गिट्ठ' मेटाबी ।
हाथ सँ जँ भ' सकय तँ,
किमपि नहिं कैंची चलाबी ।।
व्यक्ति जँ हो श्रेष्ठ तँ
कटु बात पर नै ध्यान दी ।
मुदा जँ हो नीच तँ, तै-
व्यक्ति पर नै ध्यान दी ।
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