साधनाके कार्यमे,
कहियो ने समुचित हड़बड़ी ।
जँ ने सुस्थिर चित्त राखब,
हएत अतिशय गड़बड़ी ।।
हएत अतिशय गड़बड़ी,
नै धैर्यके कहियो तजी ।
धैर्ययुत छथि वीर हुनका,
जुनि कियो कायर बुझी ।।
नओ मासमे गर्भस्थ शिशु,
परिपक्व भ' निकलैछ जहिना ।
चित्तके सुस्थिर भेनहि
परिपक्व हो सब साधना ।।
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