Tuesday, February 13, 2024

पर्यावरण संरक्षण

प्रकृति संग व्यवहार अनुचित, लोक निश-दिन क' रहल अछि । जेहन करनी तेहन प्रतिफल, ओहो बदला ल' रहल अछि ।। ग्रीष्म धधकाबय जगत के, धाह स' जिबिते जराबय । जाड़ भेल निर्मोह, जीवक- हड्डियो तक के गलाबय ।। कतहु अतिशय वृष्टि, दाही- घ'र आँगन तक दहेलक । कतहु भ' गेल महारौदी, जजातो सबके जरेलक ।। प्रदूषित पर्यावरण अछि, श्वास दुर्लभ भ' रहल अछि । अपन किरदानी स' मानव, प्राण अपनहि ल' रहल अछि ।। गाछ-बिरिछक वृद्धि हो, सब- जीव-जंतुक करी रक्षण । सैह थिक पूजा प्रकृति केर, भ' जेतै धरणी विलक्षण ।।

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