Sunday, January 28, 2024

अहंता आओर प्रेम

अहंता आ प्रेम एक्के- वृक्ष के दू शाख होमय । प्रेम त्यागक लेल आतुर, अहंता लेबाक सोचय ।। अहंता लेबाक सोचय, झुकाओल सबके करै अछि। प्रेम तँ देबाक आकुल सतत ओ नमले रहै अछि ।। जे ने चिखलथि स्वाद प्रेमक प्रेम रस की बूझि सकता । उर तकर रसहीन-उस्सर जे सतत डूबल अहंता ।। बसय सबमे एके ईश्वर, प्रेम सबसँ करी सदिखन । बात ज्ञानक से की बुझता, अहंमे डूबल जे सदिखन ।। अहंमे डूबल जे सदिखन, स्वार्थ पाछाँ रहय पागल । सुधा के की स्वाद बूझत, गोबरक कीड़ा अभागल ।। बात ई कहियो ने बिसरी, ईश सबहक उर बसय । आन क्यो नहि छथि जगतमे, एके ईश्वर सबमे बसय ।। ******************************आ

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