Friday, January 26, 2024

सत्य-पथ आ मूल्य

जीवनक अदहा अबधि तँ नींदमे बीतैछ सबहक । बँचल अदहा केर अदहा खेलमे बीतैछ सबहक ।। तकर अदहा अवधि के तँ अध्ययनमे सब लगाबय । शेष बाँचल केर बेसी नित्यकर्मेमे बिताबय ।। गप्प-सप हँस्सी-ठहक्का मनोरंजन सँ जे बाँचय । सैह अत्यल्पे अवधि तँ धर्म-कर्मक लेल बाँचय ।। कलह-निंदा-व्यसनमे जुनि क्यो बिताबी ऐ समय के । धर्म-कर्मे-ज्ञान-उपकारे बिताबी ऐ समय के ।। कथू ने ल' क' अबै अछि कथू ने ल' जा सकै अछि । त्याग-जश-आ कीर्ति जिनकर सैह टा बाँचल रहै अछि ।। मात्र स्वप्ने टा ने देखी कठिन श्रम सँ सच बनाबी । स्वप्न के साकार क' क' पार बेड़ा के लगाबी ।। जड़ि ने बिसरी यैह दै अछि खाध-जल आ जीवनक रस । शुष्क जीवन कोन काजक जँ ने बाँचल जीवनक रस ।। अत्यधिक श्रमसाध्य जिनगी समारब अतिशय कठिन अछि । जीवनक रस भेटि गेनहुँ, मनुखता भेटब कठिन अछि ।। नीक संबंधी बनायब, जगतमे अतिशय कठिन छै । मुदा संबंधक निमाहब अहू सँ बेसी कठिन छै ।। लोभ-भय के बसमे कथमपि मूल्य कहियो ने गमाबी । सत्य-पथ निज आचरण के जान दइयो क' बचाबी ।। ****************************

No comments:

Post a Comment