जननि-जन्मस्थान के
परतर ने स्वर्गो क' सकै अछि ।
मुदा जननी मातृभू स'
सतत् ऊपरमे रहै अछि ।।
पिता सन्तति लेल सब किछु
त्याग लेल तत्पर रहै छथि ।
जदपि सुत निर्मोह, नै पित-
त्याग मोहक क' सकै छथि ।।
सकल नर दुनिया मे सबतरि
विजय के इच्छा करै अछि ।
मात्र सुत सँ पराजय के
पिता के इच्छा रहै अछि ।।
त्याग-इच्छा-मोह तैं, नहि-
पित जगह क्यो ल' सकै छथि ।
मात्र दुनिया टा सँ नहि, पित-
स्वर्ग स' ऊपर रहै छथि ।।
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