Sunday, January 7, 2024

स्वर्गात् उच्चत्तरः पिता

जननि-जन्मस्थान के परतर ने स्वर्गो क' सकै अछि । मुदा जननी मातृभू स' सतत् ऊपरमे रहै अछि ।। पिता सन्तति लेल सब किछु त्याग लेल तत्पर रहै छथि । जदपि सुत निर्मोह, नै पित- त्याग मोहक क' सकै छथि ।। सकल नर दुनिया मे सबतरि विजय के इच्छा करै अछि । मात्र सुत सँ पराजय के पिता के इच्छा रहै अछि ।। त्याग-इच्छा-मोह तैं, नहि- पित जगह क्यो ल' सकै छथि । मात्र दुनिया टा सँ नहि, पित- स्वर्ग स' ऊपर रहै छथि ।।

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