Thursday, November 30, 2023
नेत्र
नेत्र द्वय तँ भेटल सबके
एके रंग नै दृष्टि सबहक ।
किछु गोटे स्थूल देखथि
शूक्ष्ममे डूबल थोड़े छथि ।।
मूल्य समयक के चुकायत
अमूल्ये एकरा बुझू ।
बीति गेल जे क्षण, जगक-
सबटा धनो नै घुमा सकता ।।
शास्त्र के विद्वान यद्यपि
मूर्ख तैयो रहि सकै अछि ।
जे क्रियामे सेहो उत्तम
सैह सबसँ पैघ पंडित ।।
जदपि वाणी शास्त्रपूरित
मोन पापेमे रमल छै ।
गिद्ध नभमे उड़य ऊँचे
दृष्टि मुर्दे पर गड़ल छै ।।
समय होबय अमुल, एकरा
व्यर्थमे जे क्यो गमयता ।
घुरि ने लौटय एकोटा क्षण
जीवने बरबाद करता ।।
बनि ने सकलहुँ महादानी,
लोक सेवाके के रोकत?
भले नै तरुवर फड़ल
के रोकि सकता छाँहके ।।
बिलाड़ियो-कुकुरो आ नढ़ियो
जगमे अपना लेल जीबय ।
व्यर्थ बूझी तकर जिनगी
जे ने अनका लेल जीबय ।।
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