Tuesday, November 28, 2023

आगाँ-पाछाँ

एके सागर केर नाविक कियो अति प्राचीन छथि । कियो नवसिखुआ एतय तँ कियो अर्वाचीन छथि ।। देखिक' चिंता करू नहिं फलाँ बढि गेल बहुत आगाँ । जखन घुरती काल देखब छूटि जायत बहुत पाछाँ ।। ठाढ़ सैन्य परेड मे छथि सकल सैनिक, किछु गोटे छथि अंत तँ किछु आदि छथि । 'मुडू पाछाँ' होइत अछि आदेश जखनहिं, जे छला अन्तिम से से बनि गेल आदि छथि ।। अहं जुनि क्यो करी हम छी बहुत आगाँ, गम कियो नहिं करथु जँ भ' गेलहुँ पाछाँ । काल के गति शूक्ष्म हिनका क्यो ने जानय, की पता आदेश हो 'मुड़ि जाउ पाछाँ' ।। विपति गिरि सम होय यद्यपि मुदा सदिखन धैर्य राखू, आश ईशक धरू सबदिन कुपथ पर नहिं डे'ग राखू । धैर्यपूर्वक शांत चित्तें दिवस के फेरी के दे'खू, नीक दिन आयत जरूरे सुपथ पर नित डे'ग राखू ।। ***********************

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