अहंता अज्ञानता थिकि,
बुद्धि के छथि नाशकर्त्री I
क्रोध, मोहक जन्मदात्री,
विवेकक अपहरणकर्त्री II
विवेकक अपहरणकर्त्री,
मनुजता के मृत्युदात्री I
दोख दुर्गुण वृद्धिकर्त्री,
मनुख के गर्तक प्रदात्री II
गुमानक की काज, सुन्दर-
देह एकदिन हो जरंता ।
चिता भूमिक करी दर्शन,
जखन क' आबय अहंता II
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