होइछ दुर्बल मैथिलक गार्हस्थ जीवन,
मातृ पक्षक ख्याल ने ककरो रहै छै ।
जँ रहत निर्बल शकट केर एक पहिया
रेस मे की तेहन गाड़ी टिकि सकै छै ।।
गर्भ मे अबिते उपेक्षित रहय निशदिन,
जकर जन्मे समाजक लेल होइछ अनुचित ।
से कोना बनती आ जनती सबल संतति
चिकित्सा शिक्षा ने भोजन जनिक समुचित ।।
पश्चिमक सब भेल विकसित, मुदा एखनो-
रूढ़ि, भ्रम मे सकल मैथिल छी पड़ल ।
करू प्रोत्साहित सतत कन्या के, उन्नति-
के रोकत, उत्साह जँ नारिक प्रबल ।।
खेत जेहने रहत फसलो हैत तेहने
माय सबला जखन सबलो पुत्र तखनहि ।
पुत्र लव कुश के सदृश जनमैछ निश्चय
माय से'हो जानकी सम हैत जखनहि ।।
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