Wednesday, November 15, 2023

खेतक अनुरूप फसल

होइछ दुर्बल मैथिलक गार्हस्थ जीवन, मातृ पक्षक ख्याल ने ककरो रहै छै । जँ रहत निर्बल शकट केर एक पहिया रेस मे की तेहन गाड़ी टिकि सकै छै ।। गर्भ मे अबिते उपेक्षित रहय निशदिन, जकर जन्मे समाजक लेल होइछ अनुचित । से कोना बनती आ जनती सबल संतति चिकित्सा शिक्षा ने भोजन जनिक समुचित ।। पश्चिमक सब भेल विकसित, मुदा एखनो- रूढ़ि, भ्रम मे सकल मैथिल छी पड़ल । करू प्रोत्साहित सतत कन्या के, उन्नति- के रोकत, उत्साह जँ नारिक प्रबल ।। खेत जेहने रहत फसलो हैत तेहने माय सबला जखन सबलो पुत्र तखनहि । पुत्र लव कुश के सदृश जनमैछ निश्चय माय से'हो जानकी सम हैत जखनहि ।।

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