Monday, February 26, 2024

मुस्की थिक स्वागतक द्वार

त्याग नमता प्रेम सबसँ, सबकियो नै क' सकै अछि । बीज नैसर्गिक गुणक तँ पूर्व जन्मे सँ पड़ै अछि ।। ईश पर बिसबास क' क' करी निज कर्तव्य सबटा । जएह हमरा लेल उत्तम सएह हमरा लेल करता ।। मात्र जन्मे मनुखमे भेल, तएँ ने सबके मनुख बूझी । मनुखता जिनकामे भेटय, असल तिनके मनुख बूझी ।। आँखि मुनिक' जे कियो बिसबास सबपर क' लेता । बान्हि लीय' कसिक' गिट्ठ', एकदिन खत्ता खेता ।। ओढ़ि मानव खाल बहुतो भेड़िया नित रहय उद्यत । नम्रता शिशुता सजनता देखितहिं धरिक' दबोचत ।। मौन मुस्की पुष्पसँ पूजन सकल अभ्यागतक । मौन थिक रक्षा कवच तँ द्वार मुस्की स्वागतक ।। ************************

Sunday, February 25, 2024

मर्मके भेदब उचित नहि ।

क्षणिक स्वार्थक लेल जे क्यो दैत छथि तकलीफ अनका । लाभ सांसारिक भले हो, पारमार्थिक हानि तिनका ।। खूब उत्साहें मनाबी, छोट खुशियोके सुअवसर । यएह सम्बल जीवनक थिक, कत' ताकब दीर्घ अवसर ।। अंत नै तृष्णाक अछि, संतोषके सुख होइछ उत्तम ।। भेटल जे प्रारब्धसँ, अछि- सैह सबहक लेल उत्तम ।। अहंता शैतान थिक जे बनाबय दानव मनुजके । नम्रता ब्रह्मास्त्र, बनबय- जे महामानव मनुजके ।। भले कतबो हो मतान्तर, मर्मके भेदब उचित नहि । पड़त गिठ्ठ', बादमे- लौटब त' कहियो मिटि सकत नहि ।। ******************************

Monday, February 19, 2024

मात-पित

मात-पित छथि तीर्थराजे व्यर्थ जुनि बौखल करू । हुनक पूजन आर सेवा अहर्निश लागल रहू ।। घुमि रहल अछि तीर्थमे पर मोन अन्यत्रे घुमै छै । घरेमे सब तीर्थ रहितो व्यर्थ श्रम खर्चा करै छै ।। थिका सज्जन तीर्थ सद्यः दर्शने सँ पुण्य भेटय । तीर्थ के फलमे हो देरी सज्जनक फल तुरत भेटय ।। ****************************

Tuesday, February 13, 2024

पर्यावरण संरक्षण

प्रकृति संग व्यवहार अनुचित, लोक निश-दिन क' रहल अछि । जेहन करनी तेहन प्रतिफल, ओहो बदला ल' रहल अछि ।। ग्रीष्म धधकाबय जगत के, धाह स' जिबिते जराबय । जाड़ भेल निर्मोह, जीवक- हड्डियो तक के गलाबय ।। कतहु अतिशय वृष्टि, दाही- घ'र आँगन तक दहेलक । कतहु भ' गेल महारौदी, जजातो सबके जरेलक ।। प्रदूषित पर्यावरण अछि, श्वास दुर्लभ भ' रहल अछि । अपन किरदानी स' मानव, प्राण अपनहि ल' रहल अछि ।। गाछ-बिरिछक वृद्धि हो, सब- जीव-जंतुक करी रक्षण । सैह थिक पूजा प्रकृति केर, भ' जेतै धरणी विलक्षण ।।

Monday, February 12, 2024

जोगाड़

आइ दू नवयुवती पुतहु के आपस मे गप्प करैत सुनि खूब हँसी लागल । एक- ' हम ओकरा कहि देलियैक जे चाहे ऐ घर मे तोहर बाप रहतौ वा हम । ' दोसर- ' अहाँक घरबला की कहलक? ' पहिल- ' जानू! इस घर में केवल तुम रहोगी, बूढ़ा चुपचाप गाँव जाएगा । अगर कुछ भी बोला तो 25 जूता मारूँगा । ' दोसर -' हमरो बुढ़िया पेर क' छोड़ि देलक । ई दिय', ओ दिय', चाह दिय', हॉर्लिक्स दिय'..... । पहिल- ' त' की केलिऐ? ' दोसर- ' ओकरे ल'ग मे सब चीज राखि देलिऐक । भोर स' साँझ तक अपस्याँत रहै छलौं । गिलास लाउ, पानि गरम करू, हॉर्लिक्स खसाउ, फेर घोरू...। आब जखन मोन हेतै, पानि गरम क' लेत आ चम्मच स' टन, टन, टन.... क' क' घोरि क' पी लेत ।' पहिल- ' बाह! नीक बुइध लगेलौं, आब अपने गाम भागि जैत । हमहूँ किछु एहने जोगाड़ लगबै छी ।' ............................

Thursday, February 8, 2024

प्रेमक डोइर

ध्यान दी मजगूत डोरी- प्रेम के नहिं टूटि पाबय । नहिं जुटय, गिट्ठ' पड़य, जँ फेर सँ ओ जूटि पाबय ।। जँ फेर सँ ओ जूटि पाबय, स्नेह सँ गिट्ठ' मेटाबी । हाथ सँ जँ भ' सकय तँ, किमपि नहिं कैंची चलाबी ।। व्यक्ति जँ हो श्रेष्ठ तँ कटु बात पर नै ध्यान दी । मुदा जँ हो नीच तँ, तै- व्यक्ति पर नै ध्यान दी । **********************

Monday, February 5, 2024

धैर्य

साधनाके कार्यमे, कहियो ने समुचित हड़बड़ी । जँ ने सुस्थिर चित्त राखब, हएत अतिशय गड़बड़ी ।। हएत अतिशय गड़बड़ी, नै धैर्यके कहियो तजी । धैर्ययुत छथि वीर हुनका, जुनि कियो कायर बुझी ।। नओ मासमे गर्भस्थ शिशु, परिपक्व भ' निकलैछ जहिना । चित्तके सुस्थिर भेनहि परिपक्व हो सब साधना ।।

Saturday, February 3, 2024

एकटा रोचक कुश्ती प्रतियोगिता

कपरिया मिडिल इस्कूलमे पड़हैत कालक ई घटना थिक । तै समयमे हम छट्ठामे छलहुँ । स्व0 यमुना प्रसाद सिंह प्रधानाध्यापक छलाह । सहायक शिक्षकमे स्व0 घूरन बाबू, स्व0 रामस्वार्थ बाबू, स्व0 भगलू बाबू, मौलबी साहब(नाम नै याद अछि) ... आदि छलाह । यदा-कदा नव शिक्षक सब सेहो पढाब' आबि जाइत छलाह । यमुनाबाबू मिडिले इस्कूलके कैम्पसमे नवका उच्च विद्यालय शुरू कएने छलाह तएँ नव-नव शिक्षक खूब अबैत छलाह । सब शिक्षक के पढाबक लेल मिडिल इस्कूलमे सेहो पठबैत छलथिन्ह । एकसँ एक नीक शिक्षक अयलाह मुदा बेसी दिन नै टीकि सकलाह, दरमाहा नाम मात्र देल जाइत छलन्हि । मुदा हमरा सबके बड्ड लाभ भेल । विद्वान शिक्षक सबसँ पढ़बाक सुअवसर प्राप्त भेल । स्व0 राजकर्ण बाबू, अभिमन्यु बाबू, राजेन्द्र बाबू, प्रताप बाबू... आदि मेधावी आ प्रकांड विद्वान शिक्षक सब बहुत किछु सिखौलनि । एक दिन कुश्ती प्रतियोगिता राखल गेलैक । गामसँ कपरिया जाइत काल भलनीमे एकटा बाबाजी भेटलाह । ओ सबके मनोकामना पूर्तीक मंत्र दैत छलथिन्ह । हमहूँ कहलियन्हि जे आइ कुश्ती लड़क अछि, कोनो मंत्र दिय' । ओ कहलाह जे अहाँ ईशान कोनमे नैऋत्य कोन दिस मुँह क' क' ठाढ़ भ' क' हनुमानजीके ध्यान क' क' कुश्ती लड़ब शुरू करब तँ निश्चय विजय भेटत । इस्कूलमे जखन कुश्ती प्रतियोगिता शुरू भेलैक तँ हमर नाम नै छल । हमरो लड़बाक मोन नै छल आ शिक्षको सब हमरा नै लड़ाब' चाहैत छलाह । एकर कारण ई छल जे हम मेधावी छात्र छलहुँ, फस्ट सेहो करैत छलहुँ मुदा दुब्बर-पातर छलहुँ; कुस्ती लड़ब भुसकौल आ मोट-सोंट सबहक काज मानल जाइत छलैक । करमौलीक मेधानन्द नामक एकटा छात्र हमरे सँ लड़बाक जिद्द क' देलक । हम जँ जँ नै-नै कहियैक ओ तँ तँ जोड़सँ टाल ठोकब शुरू कएलक । आब शिक्षको सब कह' लगलाह आ हमरो नै नै करैत तैयार होम' पड़ल । हम साधुक बात याद क' क' ईशान कोनमे ठाढ़ भ' लड़ब शुरू केलहुँ । कुश्ती प्रारम्भ आ समाप्तिमे मात्र पाँच-दस सेकेंडक अंतर कहक चाही । कियो दखलकैक, कियो नहियों देखलकैक । पता नै हनुमानजी की क' देलथिन्ह! हाथ मिलाबैत देरी छिटकी मारलिऐक से चारूनाल चित्ते खसलैक । ओकर दहिना हाथ टूटि गेलैक आ ओ चिचियाय लागल । ई स्थिति भ' गेलैक जे ओकरा टांगिक' लाब' पड़लैक । एक मास तक खट्टरि हलुआइन ससारिक' हाथ ठीक केलकैक । संभवतः एखनो टेढ़े हेतैक । तकर बादसँ ओ हमरा सँ कुस्ती लड़बाक फेर नाम नै लेलक । आइ एसगर दरबज्जा पर बैसल छी तँ ओ घटना याद पड़ि गेल आ मोन भेल जे अपनो लोकनिकें बाल्यकालक ई रोचक घटना सुना दी । ऐ घटनाक चर्च जखन मेधानन्दक समक्ष एखनो होइत छैक तँ ओकरा खूब हँस्सी लागि जाइत छैक । ************************************************* *

जेहन करता तेहन भोगता ।

अदृश शक्तिक डाङ् कसगर, मुदा देखबामे ने आबय । डाङ् पड़ितो किछु फरक नै, पुनः पापे नीक लागय ।। करथि गणना सभक कृत्यक, फलो तहिना भोग' पड़तै। बबूरक जे गाछ रोपतै, आम तैमे कोना फड़तै ।। जानिक' बइमान सब तँ, लोभमे गै गीर लै अछि । मुदा भोगनाहर ने बाँचय, दैव के से दोख दै अछि ।। जे करत गलती जरूरे, पापके से भोग भोगता । कर्मफल सिद्धांत अविचल, जेहन करता तेहन भोगता ।। **************************

Thursday, February 1, 2024

नारियल सम बाह्य दृढ़तम

नीक ********* नीक तकरे बुझी जे निन्दा ने अनकर करय कहियो । जदपि अप्पन त्रूटि लघुतम खेदके प्रगटैछ तइयो ।। पैघ गलतीयो जँ अनकर माफ ओ क' दैछ सदिखन । मदति अनकर करक, ताकथि- सुअवसर छोटो ओ सदिखन ।। मदति यद्यपि करथि, पर- एहसान नै कहियो जनाबथि । जरथि नै अनकर खुशी सँ जश्न हिरदय सँ मनाबथि ।। बूझि अनकर भावना, नै- किमपि ककरो पर हँसै छथि । बात अनकर हृदयके महसूस निज उरमे करै छथि ।। अपन हृदयक ध्वनिक ओ आदर सेहो सदिखन करै छथि । सत्यके संग देथि आ बलवान झूठो सँ लड़ै छथि ।। लेख कविता चित्रकारी गीत-संगीतोमे रुचि छन्हि । सकारात्मक काजमे रत व्यसन सँ अतिशय अरुचि छन्हि ।। आत्मविश्वासे भरल आ बाह्य-अंदर एक छथि, नीक श्रोता प्रखर वक्ता नम्र आ किरतज्ञ छथि ।। प्रकृतिप्रेमी जीवप्रेमी अहिंसक अतिशय सरल, नारियल सम बाह्य दृढ़तम हृदय करुणा सँ भरल ।। ***************************