
Tuesday, February 18, 2025
दादाजी के संस्मरण (h) :-
गया :- भारत के बिहार राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर और गया जिले का मुख्यालय है । यहाँ के लोग मगही बोलते हैं । यह अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थलों में से एक है । यहाँ विदेशी पर्यटक लाखों की संख्या में आते हैं । इस नगर का हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्मों से गहरा ऐतिहासिक सम्बंध रहा है । गया का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है । गया तीन ओर से छोटी व पथरीली पहाड़ियों से घिरा है, जिनके नाम मंगला-गौरी, शृंग स्थान, रामशिला और ब्रह्मयोनि है । नगर के पूरब में फल्गू नदी बहती है । वैदिक काल के कीकट प्रदेश के धर्मारण्य क्षेत्र में स्थापित नगरी है गया । वाराणसी की तरह धार्मिक नगरी के रूप मे गया की प्रसिद्धि है । पितृपक्ष मे पितरों को पिंडदान के लिए लाखों श्रद्धालु यहाँ जुटते हैं । यहाँ का विष्णुपद मंदिर हिन्दू तीर्थयात्रियों के लिए काफी प्रसिद्ध है । पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के पाँव के निशान पर इस मंदिर का निर्माण कराया गया है । हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुंठ की प्राप्ति होती है । मुक्तिधाम के रूप मे प्रसिद्ध गया तीर्थ को गया जी कहा जाता है । कहा जाता है कि भगवान विष्णु का परम भक्त गयासुर नामक दैत्य भगवान को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किया कि मेरे यज्ञ करते समय मेरे दर्शन करनेवालों के सारे दोष क्षमा कर दिए जायँ । अनंत राक्षस लोग जिंदगी भर कुकर्म कर मृत्यु के समय उसके दर्शन कर मुक्त होने लगे । अतः भगवान विष्णु ने उसे धरती के भीतर यज्ञ करने को कहा और उसे धरती के भीतर अपने पैरों से भेज दिया । ऐसा करते समय भगवान के पैर के चिन्ह यहाँ पर पड़े थे जो आज भी विष्णुपद मंदिर में देखे जा सकते हैं । गया मौर्य काल में एक महत्वपूर्ण नगर था । खुदाई के समय सम्राट अशोक से संबंधित आदेश पत्र पाया गया है । 1787 में होल्कर वंश की (बुंदेलखंड) साम्राज्ञी महारानी अहिल्याबाई ने विष्णुपद मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था । मेगास्थनीज की इंडिका, फ़ाह्यान तथा व्हेनसांग के यात्रा वर्णन में गया को समृद्ध धर्म क्षेत्र के रूप में वर्णन किया गया है । ज्ञान की खोज मे करीब 500 ई0 पूर्व गोतम बुद्ध फल्गू नदी के तट पर पहुँचे और बोधि वृक्ष के नीचे तपस्या करने बैठे । यहीं भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई । यह स्थान बोधगया कहलाने लगा ।
बोधगया :- बिहार में गया से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोधगया एक प्रमुख धार्मिक स्थल है जहाँ गौतम बुद्ध को 2500 वर्ष पूर्व बोधि वृक्ष के नीचे बोध की प्राप्ति हुई थी, इसीलिए उन्हें बुद्ध कहा जाने लगा । यह बौद्ध धर्म का पवित्रतम स्थल है । यहाँ के महाबोधि मंदिर का धार्मिक एवं पर्यटन की दृष्टि से अंतर्राष्ट्रीय पहचान है । बोधगया, पूर्व मे मगध राज्य की राजधानी भी रह चुका है । यहाँ प्रतिवर्ष प्रबुद्ध सोसाइटी द्वारा ज्ञान एवं सम्मान समारोह किया जाता है । यह स्थान राष्ट्रीय राजमार्ग 83 पर स्थित है । वर्ष 2002 में यूनेस्को द्वारा इस शहर को विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया ।
करीब 500 ई 0 पूर्व गौतम बुद्ध फल्गू नदी के तट पर पहुँचे और बोधि पेड़ के नीचे तपस्या करने बैठे । तीन दिन और तीन रात की तपस्या के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसके बाद वे बुद्ध के नाम से जाने गए । उन्होंने वहाँ 7 हफ्ते अलग-अलग जगहों पर ध्यान करते हुए बिताया और फिर सारनाथ जाकर धर्म का प्रचार शुरू किया । बुद्ध के अनुयायियों ने बैसाख पूर्णिमा के दिन उस स्थान पर जाना शुरू किया जिस दिन बुद्ध ने जिस स्थान पर ज्ञान प्राप्त की थी । धीरे-धीरे यह स्थान बोधगया के नाम से जाना गया और यह दिन बुद्ध पुर्णिमा के नाम से जाना गया ।
528 ई 0 पूर्व कपिलवस्तु के राजकुमार गौतम ने सत्य की खोज में घर त्याग दिया । वे ज्ञान प्राप्ति हेतु निरंजना नदी के तट पर भासे एक छोटे से गाँव उरुवेला आ गए । इसी गाँव मे एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान साधना करने लगे । एक दिन वे ध्यान में लीन थे तो गाँव की एक लड़की सुजाता एक कटोएर खीर तथा शहद लेकर आई । खीर, शहद खाने के बाद उन्हें और अच्छा ध्यान लगा । कुछ दिनों बाद अज्ञान का बादल छँट गया, उन्हे ज्ञान प्राप्त हो गया । अब वे बुद्ध थे। महाबोधि मंदिर में स्थापित मूर्ति का संबंध स्वयं भगवान बुद्ध से कहा जाता है । मंदिर निर्माण जब पूर्ण होने को था तो लोगों ने एक शिल्पकार को खोजना शुरू किया जो अच्छी मूर्ति बना सके । एक दिन एक शिल्पकार आया और बोला कि वह छह माह में मूर्ति निर्माण कर देगा लीकीन शर्त है कि समय के पहले कोई मंदिर का दरबाजा न खोले । व्यग्र ग्रामवासियों ने समय से चार दिन पहले ही मंदिर का दरबाजा खोल दिया । मंदिर के अंदर एक भव्य मूर्ति थी लेकिन छाती वाला भाग पूर्ण रूप से तराशा नहीं गया था । कुछ दिन बाद एक बौद्ध भिक्षु मंदिर में रहने लगा । बुद्ध उसके सपने में आए और बोले कि उन्होंने ही इस मूर्ति का निर्माण किया था । बुद्ध की यह मूर्ति बोद्ध जगत में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त मूर्ति है । नालंदा और विक्रमशिला के मंदिरों में इसी मूर्ति की प्रतिकृति स्थापित है । बोधगया को बुद्ध के समय उरुवेला के नाम से और फल्गू नदी निरंजना के नाम से जाना जाता था ।
हमलोग गाइडजी के साथ बोधगया के सभी स्थानों का भ्रमण किया । तिब्बतियन टेंपूल, थाइ टेंपूल, जैपनीज टेंपुल, भूटानी मंदिर/मठ, वियतनामी मंदिर .. आदि स्थापत्य कला के अनोखे नमूने हैं । सभी प्रमुख स्थानों को देखकर हमलोग ट्रेन से धनबाद आ गए, फिर मिनी बस से सिंदरी । इस ट्रिप को पर्यटन की दृष्टि से बहुत उत्तम मानता हूँ । अभी तक गया और बोधगया कई बार भ्रमण कर चुका हूँ लेकिन फिर सासाराम और इंद्रपुरी जाने का मौका नहीं मिला ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment