
Tuesday, February 11, 2025
दादाजी के संस्मरण (b)
बी.आइ.टी. सिंदरी में द्वितीय वर्ष :-
द्वितीय वर्ष में मैंने पहला यह संकल्प लिया कि अनावश्यक धनबाद नहीं जाऊँगा । इसका फल यह हुआ कि मुझे पढ़ाई के लिए शनिवार और रविवार का काफी समय मिलने लगा । मुझे अब पाठ संबंधी कोई तनाव नहीं रहता था । खेल-खेल में मेरे सारे टास्क तैयार हो जाते थे । खेलने-कूदने का भी समय मिलने लगा । मैं यदा-कदा फुटबॉल, बैडमिंटन, कबड्डी, हॉकी, चेस.. आदि खेल में भी जाने लगा । पढ़ाई में भी मन लगने लगा । मैं अब क्लास में भी अधिक समझने लगा ।
आर्थिक तंगी के बावजूद अब मेरी सभी कार्यो में रुचि बढ़ गई । कबड्डी टीम का भी भाइस कैप्टेन हो गया । संघ की शाखाओं में भी जाने लगा । आपातकाल के बाद मैं बी.आइ.टी. सिंदरी की दोनों शाखाओं का कार्यवाह भी बन गया । ज़िंदगी में अधिक आनन्द आने लगा । कई छात्रावास बदले । ए-जोन के 7 नं0 होस्टल के बाद बी-जोन के 19, 13 और फिर 14 नं0 होस्टल में पहुँच गया । होस्टल नं0 7 में सभी कमरे 4 बेड के थे । 19, 13 और 14 में सिंगिल बेड के रूम्स थे । सात नं0 छात्रावास में तो काफी सारे मित्र थे- सुरेन्द्र, बरुनजी, द्वारकानंदजी, अबध, जीतेंद्र, जरताब, गोविंद..... इत्यादि । मगर सुरेन्द्र के साथ मैं अधिक समय बिताता था । 19 में दिनेश मिश्रा के साथ अधिक रहता था । 14 में बरुनजी और सुरेन्द्र के साथ अधिक रहा । 13 में सुरेन्द्र और बरुनजी के साथ रहा ।
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