
Friday, February 14, 2025
दादाजी के संस्मरण (g) :-
फाइनल ईयर में असैनिक अभियंत्रण के छात्रों का एक जिऑलोजिकल टूर जिओलॉजी विभाग के तरफ से रखा गया । प्रोफेसर श्रीवास्तव जिओलॉजी के हेड थे, वे भी हमलोगों के साथ थे । हमलोग धनबाद से ट्रेन से सासाराम के डेहरीऑनसोन गए । वहाँ से इंद्रपुरी बराज देखने गए ।
इंद्रपुरी बराज :- सोन नदी पर निर्मित यह बराज सिंचाई की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है । इसकी लंबाई लगभग 1407 मीटर(4616') और फाटकों की संख्या 60 है जिसमे से केवल 9 से ही जल निकासन होते हैं । यह दुनियाँ का चौथा सबसे लंबा बैराज है (दुनियाँ का सबसे लंबा बैराज फरक्का बैराज हैजिसकी लंबाई 2253 मीटर है) । यह 1960 मे शुरू हुआ और 1968 में चालू किया गया । अंग्रेजों के समय में 1873-74 में देश की सबसे पुरानी सिंचाई प्रणालियों में से एक देहरी में सोन के पर एक एनीकट के साथ विकसित किया गया था । सोन से नदी के दोनों किनारों पर नहर प्रणाली से पानी और बड़े क्षेत्रों की सिंचाई की जाती है । एनीकट से 8 कि.मी. ऊपर इंद्रपुरी बैराज निर्मित है । इसके दो मुख्य कैनाल हैं- पूर्वी नहर 144 कि0मी0 और पश्चिमी 212 कि०मी० । इसकी 149 शाखा नहरें हैं और 1235 बितरितियाँ हैं । मुख्य उद्देश्य खेतों की सिंचाई और जलापूर्ति तथा बाढ़ नियंत्रण ही है लेकिन विजली उत्पादन से भी लोग लाभान्वित हो रहे हैं । इसका निर्माण हिंदुस्तान कन्सट्रक्सन कंपनी ने किया था, इसी कंपनी ने फरक्का बराज भी बनाया है । इंद्रपुरी बांध पर्यटकों को भी खूब आकर्षित करता है । हमलोगों को गेस्ट हाउस में अंटकाया गया था और शानदार भोजन का इंतजाम था । हमलोगों ने उसी जंगल मे मंगल मनाते हुए रात्रि-विश्राम किया । पुनः शुबह मे बराज, जलाशय और प्रकृति का आनंद लेते हुए हमलोग डेहरी-ऑन-सोन स्टेशन पहुँचे । वहाँ से सासाराम स्टेशन उतरकर शेरशाह का मकबरा देखने गए ।
शेरशाह का मकबरा :- बिहार के सासाराम स्थित शेरशाह सूरी के मकबरा निर्माण 16 अगस्त 1545 को पूरा हुआ । यह बिहार के पठान सम्राट शेरशाह सूरी की याद मे बनाया गया था । शेरशाह सूरी का जन्म 1486 में हुआ था । उसके जन्म का नाम फरीद खान था । भारत मे जन्मा इस पठान ने मुगल सम्राट हुमायूँ को 1540 में हराकर उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य की स्थापना की । बाबर की सेना में एक साधारण सैनिक रहते हुए अपनी बहादुरी के बाल पर वह सेनापति बन गया और फिर बिहार का राज्यपाल बन गया । 1537 मे हुमायूँ जब सुदूर अभिया पर था तब शेरशाह ने बंगाल पर कब्जा कर सूरी वंश की स्थापना की । 1539 मे चौसा की लड़ाई मे हुमायूँ का सामान्य करना पड़ा और वह जीत गया । 1540 में पुनः हुमायूँ को हराकर उसे भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। शेरखान की उपाधि पाकर सम्पूर्ण उत्तर भारत पर उसका आधिपत्य हो गया । 1545 में कालिंजर की घेराबंदी के दौरान राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय द्वारा बेरहमी से मार डाला गया । शेरशाह के अनेक प्रशंसनीय जनकल्याण के कार्य हैं। रुपया उसी का चलाया हुआ है । विश्व प्रसिद्ध ग्रैंड ट्रंक रोड उसी का बनाया हुआ है । यह काबुल से लेकर चटगांव तक उसके द्वारा निर्मित है । सड़क की दोनों तरफ पेड़, मील के पत्थर, धर्मशाला, सौचालय, जलापूर्ति हेतु कुंए .. आदि कल्याणकारी कार्य उन्होंने कराए । अपने जीवनकाल में ही उसने अपने मकबरे का निर्माण शुरू करबाया । 13 मई 1545 को उसकी मृत्यु हुई और 16 अगस्त 1545 को मकबरे का निर्माण पूरा हो गया । अपने गृहनगर सासाराम मे उसका मकबरा कृत्रिम झील से घिरा हुआ है । यह हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य शैली का बेजोड़ नमूना है । शेरशाह के मकबरा को भारत का दूसरा ताजमहल भी कहा जाता है । लगभग 52 एकड़ में फैले सरोवर के बीच में मकबरा करीब 122' ऊंचा है ।
यह मकबरा विश्व के ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है । इसके वास्तुकार मीर मुहम्मद अलीवाल खान थे । इसका निर्माण रेड सैंड स्टोन से हुआ है । मकबरा वर्गाकार पत्थर के चबूतरे पर बना है । प्रत्येक कोने में गुंबददार खोखे हैं, छतरीस, इसके आगे पत्थर के किनारे और चबूतरे के चारों ओर सीढ़ीदार मूरिंग्स हैं, जो एक विस्तृत पत्थर के पुल के माध्यम से मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है । मुख्य मकबरा अष्टकोणीय है जिसके शीर्ष पर एक गुंबद है जो 22 मी0 ऊँचा है जिसके चारों ओर से सजावटी गुंबददार खोखे हैं जो कभी रंगीन चमकता हुआ टाइल के काम मे शामिल थे । मकबरे के चारों ओर की झील को सूर राजवंश द्वारा सुल्तान वास्तुकला के अफ़गान चरण में विकास के रूप मे देखा जाता है । मकबरा शेरशाह के साथ-साथ उसके बेटे इस्लाम शाह के शासनकाल के दौरान शेरशाह की मृत्यु के तीन माह बाद (16.08.1545) बनाया गया था ।
शेरशाह सूरी के पिता का नाम हसन शाह सूरी था । उसका भी मकबरा कुछ ही दूर पर है जिसे 'सूखा रौजा' कहा जाता है । हमलोगों ने पूरा कैंपस का भ्रमण किया । मैंने किसी से अकेले में पूछा था कि दूर में दिखाई देनेवाला मकबरा किसका है तो उसने कहा था कि वह शेरशाह के पिता का मकबरा है । जब हमलोग मकबरा पर ऊपरी मंजिल पर टहल रहे थे तो यही प्रश्न हमारे प्राध्यापक महोदय ने पूछ दिया कि बगल का मकबरा किसका है । मैंने कहा कि शेरशाह के पिता का है । उन्हें लगा कि यह मेरा मजाक उड़ा रहा है । वह मेरी ओर कुछ क्रोधित मुद्रा में देखते हुए आगे बढ़ गए । जब हमलोग टहलकर नीचे उतर रहे थे तो उन्होंने दूर जाकर चुपचाप किसी से वही प्रश्न किया । पर्यटक ने मेरा ही उत्तर दिया । अब उनका क्रोध शान्त हो गया था और वे तेजी से मेरे पास आकर मेरी पीठ थपथपाये- "मिस्टर झा, तुम ठीक बोले थे, वह शेरशाह के अब्बू का ही मकबरा है" । मुझे हँसी आ गई । हमलोग डेहरी-ऑन-सोन स्टेशन आकर धनबाद की गाड़ी में चढ़ गए । हमारा एक साथी था जरताब जाफ़र कुरेसी । वह मुजफ्फरपुर के एक प्रख्यात चिकित्सक का लड़का था । वह हमलोगोंके साथ बिहार सरकार में ज्वाइन किया था लेकिन कुछ वर्षों के बाद अमेरिका चला गया, आजकल लॉस-एंजिलिस में एक प्रमुख उद्योगपति है । वह भी उस टूर मे हमलोगों के साथ था । उसका बड़ा भाई गया मेडिकल कॉलेज में पढ़ता था और प्राइवेट लॉज मे रहता था । उसने गया मे घूमने का प्रोग्राम बनाया तो मेरा भी गया घूमने का मन हुआ । मैं, बरुनजी, सुरेन्द्र, ललनजी, जरताब, कृष्ण कुमार .. आदि लगभग आठ-नौ लड़के गया मे उतर गए । शाम में जरताब के भाई के लॉज पहुँचे । उसके भाई ने अपने मित्रों को बोलकर कई कमरों में हमलोगों के ठहरने का इंतजाम कर दिया । रात्रि विश्राम के बाद सुबह 7 बजे हमलोग बोधगया गए । बोधगया में ललनजी के बहनोई पर्यटन विभाग मे गाइड थे । वही हमलोगों को सभी पर्यटन स्थलों को घुमाने लगे । फ्री के गाइड का काम करने लगे । अब जरा मैं गया और बोधगया के बारे मे कुछ जानकारी देना उचित समझता हूँ ।
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