Tuesday, February 11, 2025

दादाजी के संस्मरण :-(c)

बीआईटी पीरियड में पढ़ाई का सारांश मैं निकालूँगा कि मैं समय का सम्यक् उपयोग नहीं कर सका । इसका मूल कारण अर्थाभाव, आलस्य, अज्ञानता और समुचित मार्गदर्शन का अभाव हो सकता है । परिवार और गाँव में पहले-पहल इंजीनियरिंग में पढ़नेवाले लड़के के साथ ऐसा होना स्वाभाविक भी है । मैंने पढ़ाई को कभी भी बहुत सीरियसली नहीं लिया । सीनियर छात्रों और शिक्षकों से और अधिक मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिए था । समय का समुचित उपयोग बहुत ही आवश्यक है । जो बात अभी समझ में आ रही है, काश! उस समय आ जाती तो परिणाम कुछ और होता । लेकिन यही होना मेरे भाग्य में लिखा था । सभी को समय का महत्त्व समझना चाहिए, बाद में पछताने से क्या लाभ! "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत" इंजीनियरिंग में अत्यधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है । बारहवीं तक की पढ़ाई मेधावी छात्रों को कम मिहनत में भी हो जाती है, लेकिन अभियांत्रिकी की पढ़ाई मेधा के साथ अत्यधिक श्रम खोजती है खैर, जब सेकेंड इयर से छुट्टियों में धनबाद आना बंद हुआ तो ठीक से पढ़ाई चलने लगी और मन भी पढ़ाई में लगने लगा । जब मन लगने लगा तो समझ में भी आने लगा । अब मैं समय का महत्व समझने लगा और व्यर्थ समय बर्बाद नहीं करता था । यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि जब किसी विषय में आपका मन लगने लगता है तो वह विषय समझ में भी आने लगता है । उसी प्रकार जब कोई विषय समझ में आने लगता है तो मन भी लगने लगता है । ऐसी स्थिति जब आए तो खूब समय देना चाहिए । एक ही तरह का सैकड़ों प्रश्न बनाना चाहिए । ऐसा प्रयोग मैं बाद के दिनों में अपने तृतीय पुत्र विमलजी पर कर चुका हूँ । जब वह दसवीमें था तो मैं उससे मैथ के एक ही तरह के सैकड़ों प्रश्न बनबाता था । वाणी को भी कनाडा में कुमौन क्लासेज में इसी उद्देश्य से एक ही तरह के सैकड़ों हजारों प्रश्न दिए जाते हैं सेकंड ईयर के लिए हमलोगों को छात्रावास संख्या 13 एलॉट हुआ । उसमें पुराने छात्र लोग रहते थे । कुछ तो वर्षों से फेल कर रहे थे , कुछ पास करके भी फ्री में अपने पुराने मित्रों के साथ छात्रावास का मजा कर रहे थे । हमलोग बहुत डरे हुए थे कि उन पुराने मुस्टंडों के साथ कैसे रहेंगे । लेकिन वह केवल भ्रम निकला । हमलोग पहले खाली कमरों में घुसे ,बाद में सभी कमरे बिना किसी के प्रतिरोध के खाली हो गए । जिस छात्रावास को वर्षों से कॉलेज प्रशासन खाली नहीं करा सका था वह नए चीफ वार्डन प्रोफेसर् रंगाचारी सर ने आराम से खाली करबा लिया । इससे पहले कभी किसी ने सच्चे मन से निर्भीकतापूर्वक प्रयासही नहीं किया था। इसका अर्थ ये हुआ कि पहले के वार्डन्स ने कभी हिम्मत ही नहीं की थी । दूसरी बात यह कि सत्य के आगे झूठ नहीं टिक सकता । तीसरी बात ये कि अपने जूनियर से कोई भी लड़ना नहीं चाहता है । चौथी कि पूर्ण साहस से निर्भीकतापूर्वक विकराल से भी विकराल शत्रु पर विजय पायी जा सकती है । मेरा एक परम मित्र है, प्रकाश । उससे मेरी बड़ी पटती थी । उसकी गायकी अद्भुत थी । उसके कंठ में माँ सरस्वती का वास था ।अभी भी उसका स्वर वैसा ही है । मेरा कमरा उसके बगल में ही था । बाथरूम में प्रांगण के गार्डेन को पटाने के लिए लंबा पाइप लगा हुआ था । जाड़ा का समय था । एक रोज मैं शाम के वक्त कुछ मित्रों के साथ निकट के बाजार शहरपुरा गया हुआ था । लौटकर आया तो देखता हूँ कि मेरे कमरे में बाथरूम का पाइप लगा हुआ है और पूरा रूम पानी से भरा हुआ है । मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह प्रकाश की शरारत है । मैंने प्रतिशोध की ज्वाला अंदर में दबाए कमरे को साफ किया और पढ़ाई में लग गया । किसी को अंदर का भाव नहीं जानने दिया। दूसरे दिन जब प्रकाश नहीं था तो मैंने वही काम प्रकाश के रूम में कर दिया और चुपचाप कमरा बंद कर पढ़ाई में लग गया । लेकिन तीसरे दिन जब मैं बाहर था तो प्रकाश ने वही काम फिर कर दिया । जाड़े की हाड़ कंपकंपाने बाली रात में पूरा रूम पानी से भरा देखकर मैं आग- बबूला हो गया । पाइप से गिरते हुए पानी के साथ मैं प्रकाश के रूम में पहुँचा । वह दो-तीन मित्रों के साथ बात कर रहा था। पाइप देखकर वह कूदकर आया, हम लोगों में जोर-जोर से झगड़ा होने लगा । भगवती की कृपा से मुँह से ही झगड़ा हुआ; मैं क्रोध को समाप्त कर अपने कमरे में आ गया और कमरा बंद कर मन को शान्त कर पढ़ाई में लग गया । लेकिन, उस रोज के बाद से मेरी प्रकाश से बातचीत बंद हो गई । जहाँ तक मुझे याद है, पूरी बी.आ. टी. अवधि तक हम दोनों की बातचीत फिर नहीं हुई । जब पास कर नोकरी के लिए ईंटभ्यू देने पटना गया तो फिर बातचीत हुई और पुनः मित्रता और अधिक प्रगाढ़ हो गई जो अभी तक बरकरार है। अभी जब उस घटना के संबंध में सोचता हूँ तो काफी पश्चाताप करता हूँ । यद्यपि प्रकाश ने पहले शरारत की थी तो भी मुझे बदला नहीं लेना चाहिए था । वह थोड़ा स्वभाव से ही नटखट है, लेकिन मुझसे लोग ऐसी उमीद नहीं करते हैं । मुझे पहल कर क्षमा मांग लेना चाहिए था । अगर मैं अहं त्याग कर पुनः बातचीत करना शुरू कर देता तो सम्पूर्ण सिंदरी की अवधि में एक प्रिय मित्र के नैसर्गिक सान्निध्य सुख से वंचित नहीं रहता । मेरी पाठकों से सलाह है कि वही महान होता है जो पहले क्षमा मांग लेता है । बाद के दिनों में मैंने जीवन में अनेकों बार इस अस्त्र का प्रयोग किया मानसिक शांति के साथ-साथ अतिशय आनंद प्राप्त किया ।

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