Thursday, February 13, 2025

दादाजी के संस्मरण (e)

दादाजी के संस्मरण (e) जब हमलोग फाइनल ईयर मे था उसी समय कर्पूरी ठाकुर के समय सिंचाई विभाग में काफी भैकेंसी निकली । भकेंसी इतनी अधिक थी कि सिविल के बदले मेकेनिकल इंजीनियर को लिया जाने लगा। हमलोगों का डिमांड था कि सिविल का सीट खाली रखें, हमलोग पास करके आ रहे हैं, तब भरिएगा । उसी प्रोटेस्ट मे हमलोग सिंदरी से और जमशेदपुर से आर. आइ . टी के लोग पटना जा रहे थे । मुख्यमंत्री से मिलकर ज्ञापन देना था । सिंदरी से लगभग 30 छात्र, ट्रैकर और मिनी बस से धनबाद पहुँचे , उस समय सिंदरी से धनबाद आने-जाने का यही मुख्य साधन था । धनबाद मे पाटलीपुत्र एक्सप्रेश में हमलोग चढ़े, यह रेलगाड़ी उस समय धनबाद से पटना और वापसी के लिए बहुत ही आरामदेह एवं समय की बचत के लिए अनुकूल थी। बहुत काम स्टोपेज थी और तुरत स्पीड पकड़ लेती थी। मुझे उन दिनों बरुनजी और सुरेन्द्र की संगति में पान खाने की लत लग गई थी जो लगभग 40 वर्षों तक (2013 तक) तक रही। 2013 में प्रोस्टेट ऑपरेशन के समय चिकित्सक के परामर्श के बाद मैंने पान से संन्यास ले लिया जो 12 वर्ष बीतने पर भी बरकरार है। अब तो पान खाने की इच्छा भी नहीं होती। यह दैव कृपा और दृढ़ ईच्छाशक्ति शक्ति से ही संभव है, नहीं तो भरदिन पान चबानेवाले मेरे जैसे व्यक्ति से ये न छूट पाता। आज जब पान-खैनी खानेवाले लाखों लोगों को कैंसर जैसे असाध्य रोगियों को देखता हूँ तो ईश्वर का लाख-लाख शुक्रिया अदा करता हूँ जिनकी असीम कृपा से मैंने पान खाना 12 वर्ष पूर्व छोड़ सका था, उस चिकित्सक का भी बहुत-बहुत आभार! पान खाने की तलब के कारण हमलोग प्लेटफ़ॉर्म पर बात करते पान लेने की प्रतीक्षा करते रहे। पान लेते-लेते गाड़ी खुल गई। दौड़कर गाड़ी पर तो चढ़ गया लेकिन एक पैर का चप्पल प्लेटफ़ॉर्म पर गिर गया। गाड़ी तुरत स्पीड पकड़ चुकी थी अतः उतरकर पुनः चप्पल लेने का रिस्क नहीं ले सकता था । प्लेटफ़ॉर्म पर के एक व्यक्ति को इशारा किया तो उसने चप्पल उठाकर फेंका लेकिन तबतक गाड़ी आगे बढ़ गई और चप्पल मेरे हाथ में न आकर पुनः प्लेटफ़ॉर्म पर गिर गई । मैं अफ़सोश करते हुए भारी मन से अपने सीट पर आकर बैठ गया । हमारे अगल-बगल के सभी लोग मेरी खिल्ली उड़ाते रहे और घूम फिरकर बात चप्पल पर चलती रही। चप्पल बिल्कुल नई थी, कुछ ही दिनों पहले मैंने खरीदी थी । मैं बहुत गमगीन था । बनावटी मुसकी चेहरे पर लाता था लेकिन अंदर से बिल्कुल मायूस था । भगवान से माना रहा था कि किसी तरह कोई चमत्कार कर दो, स्टूडेंट का एक-एक पैसा बहुत मूल्यवान होता है । ट्रेन मोकामा स्टेशन पहुँच रही थी, भगवान ने मेरी बात सुन ली और अचानक से चमत्कार हो गया । पाटलीपुत्र एक्सप्रेस की सभी बोगियाँ इंटरकनेक्टेड थीं । एक यात्री पीछे के डिब्बे से शायद जगह तलाशते हुए हमारे डिब्बे में आया । उसने हमलोगों की बातचीत सुनी, चप्पल के बारे में बात करते हुए देखकर वह बोल उठा- " पीछे के डिब्बे में किसी ने एक चप्पल फेंका था । एक व्यक्ति की कनपटी में चोट लगी और उसने उस चप्पल से फेंकनेवाले को मारना चाहा लेकिन नई चप्पल देखकर वह रुक गया । उसने सोचा कि जरूर कोई बात है, नहीं तो कोई क्यों अकारण नई चप्पल फेंकेगा । उसने चप्पल को सबको दिखाया, सब हँसने लगे । सबने चप्पल को सीट के नीचे रख देने की सलाह दी । अभी भी जाने पर मिल जायगा ।" हमारे सभी मित्र हंसने लगे, मैं तो चप्पल का नाम सुनते ही दौड़ पड़ा । कई डिब्बों मे खोज करते हुए अंततः लक्ष्य तक पहुँचा । मैंने चप्पल रखनेवाले का आभार व्यक्त किया । मेरी आंतरिक खुशी पुनः लौट आई ।

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