
Monday, April 14, 2025
दादाजी के संस्मरण (i) :-
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बात सन् 1990 की है । उन दिनों मैं पुनाइचक पटना में भाड़े के एक दो रूम के फ्लैट मे रहता था । मेरे तीनों लड़के नीलूजी, दीपूजी और विमलजी क्रमशः नौ, सात और पाँच साल के थे । पटना में पुस्तक मेला लगा हुआ था । अपने अलविन पुष्पक स्कूटर पर तीनों बच्चों को बैठाकर मैं भी पुस्तक मेला घूमने गाँधी मैदान गया। उन दिनों इतनी कड़ाई से वाहनों की जाँच नहीं होती थी । तीन बच्चे थे लेकिन बिना डर के मैं सड़कों पर निकाल पड़ता था । सड़कों पर आज की तरह भीड़ नहीं रहती थी । 35 वर्षों में लगभग दूनी भीड़ हो गई है । पटना में सपरिवार रहने के उद्देश्य से पहली बार आया था । बिहार के एक छोटे से शहर बीरपुर से सीधा सबसे बड़े शहर एवं राजधानी मे आ गया था । शहर का आकर्षण मन को मोह रहा था । दिन मे हमेशा घर से बाहर ही रहता था । छुट्टी के दिन तो सुबह से शाम तक घूमता रहता था । मॉर्निंग वाक में चिड़िया खाना जरूर जाता था । सुबह में उन दिनों फ्री इंट्री थी, अतः फ्री का मजा लेना और आनंददायक था । लगभग 4.00 बजे अपराह्न में हमलोग गांधी मैदान पहुँचे । स्कूटर को फ्री पार्किंग में लगाकर पुस्तक मेला में घूमने लगे । शायद रविवार का दिन रहा होगा, अतः काफी भीड़ थी, लग रहा था पूरा पटना पुस्तक मेला घूमने आ गया है । चलते समय देह में देह का रगड़ा लगता था । कुछ ही देर टहले होंगे कि अचानक से विमलजी गायब हो गया । नीलूजी और दीपूजी को वहीं एक जगह खड़ा कर मैं विमलजी को खोजने लगा । लगभग आधा घंटा सर्वत्र खोजा लेकिन वह कहीं नहीं मिला । मैं निराश होकर हनुमान चालीसा पढ़ता हुआ रुआँसा चेहरा लिए हुए पुरानी जगह पर आकर सर पर हाथ रखकर बैठ गया । एक क्षण के लिए चारों तरफ अंधेरा छा गया । उसी समय माइक से घोषणा हुई कि विमल नाम का एक बच्चा कार्यालय में है, जिनका बच्चा है ले जायँ । जान में जान आया । मैं दौड़ा हुआ कार्यालय पहुँचा । विमलजी रो रहा था। गोद में लेकर नीलू और दीपू के पास आया । तुरत बाहर आ गया । बच्चों को कुछ खिला-पिलाकर तुरत घर आ गया । नीलू की माँ सब वाकया सुनकर रोने लगी और भगवान के पास बैठकर बड़ी देर तक प्रार्थना करती रही । आज भी जब-जब उस घटना को याद करता हूँ तो मन रूआँसा हो जाता है
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