मोन कुण्ठित जनिक, कृष्णक-
तत्व किछु नै बूझि सकता ।
मुदा भक्तिक प्रबल डोरें-
भक्त हुनका लूझि सकता ।।
शास्त्र के अवहेलि क' जे-
व्यक्ति भगवद्भक्त बनता ।
भक्ति तिनकर व्यर्थ, जग मे-
व्यवस्था से नष्ट करता ।।
मात्र ढोंगी कहथि हल्लुक,
भक्ति मार्गो सरल नै अछि ।
ज्ञान ने जिनका हो भक्तिक,
सुगम से एकरा कहै छथि ।।
मारि ममता-मोह-मत्सर
कृष्ण सबकिछु जैह बूझति ।
सैह टा छथि भक्त असली,
मर्म भक्तिक सैह बूझति ।।
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