अपन परिचय दैछ कर्मे,
बाजि नहि मिट्ठू कहाबी ।
मात्र एतबे ध्यान राखी
नीक कर्में जश बढ़ाबी ।।
नीक कर्में जश बढाबी,
वित्त यौवन होइछ चञ्चल ।
शुभे कर्में कएल अर्जित,
कीर्तिए टा हो अचञ्चल ।।
अज्ञता तजि ज्ञान बढबी,
भेटय सुअवसर जखन ।
अहंता तजि नम्रता सँ
विज्ञता बढबी अपन ।।
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