Friday, December 22, 2023

हम वैह छी ।

अही देह मे हम कखनो शूद्र, कखनो वैश्य, कखनो क्षत्रिय आ कखनो ब्राह्मण बनि जाइत छी । जखन हम शौचालय मे मलमूत्र विसर्जन मे, स्नान करैत काल देहक सफाइ- वस्त्र खिचनाइ आ प्राक्षालन मे, नाली-गली-रस्ताक साफ-सफाइ मे लागल रहैत छी तँ शूद्र बनि जाइत छी । जखन हम पेट-पूजाक जोगार मे आ हाल-रोजगार- व्यापार-नोकरी मे रहै छी तँ वैश्य बनि जाइत छी । जखन हम परिवार-समाज-देशक- रक्षा मे लागल रहैत छी तँ क्षत्रिय बनि जाइत छी । आ जखन पूजा-पाठ, अध्ययन-अध्यापन, यज्ञ-जाप मे रहैत छी तँ ब्राह्मण भ' जाइत छी । तहिना भक्ति मार्ग-साकार-भाव, ज्ञान मार्ग-निराकार-अद्वैत भाव, सेवा भाव, प्रेम भाव, अहिंसा-करुणा भाव आ एके संगें सब भाव अपना क' हमसब अलग-अलग धर्मक उपासक भ' जाइत छी । मुदा, असली बात ई अछि जे, अलग-अलग रहन-सहन, अलग-अलग खान-पान, अलग-अलग चोला, अलग-अलग भाव, अलग-अलग उपासना-पद्धति रहितो, हम वैह छी, हम सैह छी, हम एक्के छी, हम एकमात्र सत्य छी !!!! **********************

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