Wednesday, December 13, 2023

नित्य अनकेलेल जीबह

कथूके सुधि-बुधि रहय नहि सतत रासे-रंग डूबल । मात्र अपने लेल जीलहुँ त्याग के किछुओ ने बूझल ।। सोचल ने पर लेल कहियो स्वार्थ मे पागल छलहुँ । क्यो अचानक द्वार पिटलक निन्न सँ जागल छलहुँ ।। फोलल त' देखबा मे आयल वृद्ध एकटा ठाढ़ सन्मुख । " के थिकौं, अछि की प्रयोजन"? -भेलहुँ ओइ बूढ़ा सँ उन्मुख ।। आयल ओइ बूढाक उत्तर- "कुदब-फानब के तजू । हम अहाँ केर बुढापा छी चैन सँ सूतल करू ।। करू स्वागत आब हम्मर तुरत अन्दर बजा लीय' । अहाँ लेल विश्राम समुचित दे'ह मे स्थान दीय' ।।" कहलियनि-" नै आउ भीतर, आब नै हम रहब सूतल । एखन तक बेसुध छलहुँ, नहि- नीन्द मे हम रहब डूबल ।। छलहुँ माया मे फँसल हम, आब तँ जगबाक अछि । जिलहुँ अपने लेल, किछुओ- दोसर लेल करबाक अछि ।। आइ दिन सँ कान पकड़ी झूठ हम कहियो ने बाँचब । स्नेह सबसँ करब सबदिन सतत सबहक दुःख बाँटब ।।" बुढापा बाजैछ-"चिन्ता- कथू के तों जुनि कर' । जँ एहन छह सोच तँ- तों, चैन सँ एत्तहि रह' ।। आन लोकक लेल जावत- काल तक एत्त तों रहबह । उम्र कतबो भ' जेतह, तैयो ने कहियो बूढ़ बनबह ।। खूब जीबह परहितक लेल, स्वस्थ आ आनंद रहबह । नित्य अनके लेल जीबह, सतत परमानंद रहबह ।। सतत परमानंद रहबह!!!!" ************************

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