Wednesday, December 21, 2022
रामक महिमा
अगम छथि राघव अगोचर पार क्यो नहि पा सकल, नामके महिमा मुनीशो- गण ने वरनन क' सकल ।
तुच्छतम हम जीवगण
किन्नहुँ ने सक्षम भ' सकब,
नाम लइतहि पातकी-
शतकोटि भवसागर तरल ।।
रामकेर ध्यानेमे डूबल
अहर्निश सज्जन जे रहता,
ताहि साधुक साधनाके
कियोने बाधित क' सकता ।
जतय रामक भक्त तत्तहि
सिद्ध-मुनि सुरगण रहै छथि,
ततहि हरि हर ब्रह्म सेहो
विराजित सदिखन रहै छथि ।।
Sunday, August 21, 2022
धृतराष्ट्र
सबठाँ धृतराष्ट्रे भरल,
न्यायक ने छुइत छै ।
भीष्म द्रोणों मौन धएने,
दुर्योधनेक जुइत छै ।।
दुर्योधनेक जुइत छै,
कुशासने चीर हरय ।
कोना लाज बाँचल रहत,
प्रशासने स्वांग रचय ।।
युवा-भीम उठू झट,
पिशाचे पसरल सबठाँ ।
चीरू छाती ओकर,
दुशासने सबल सबठाँ ।।
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Monday, August 15, 2022
ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या
मिथ्या ज्ञाने रज्जुमे,
होइछ सर्प आभास ।
तही जेकाँ ऐ देहमे,
आत्मा केर अध्यास ।।
आत्मा केर अध्यास,
बिना ज्ञाने नै भागय ।
जेना बिना परकाश,
तिमिर किन्नहुँ नै भागय ।।
ब्रह्मज्ञान टा सत्य,
अन्य मिथ्या अज्ञाने ।
संसारे के सत्य,
बुझय सब मिथ्या ज्ञाने ।।
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मोन के व्यस्त राखी
खाली राखब मोन तँ,
भरि जायत शैतान ।
जँ ने रोपल खेत तँ,
घास-फूस मैदान ।।
घास-फूस मैदान,
करी नीके नित चिन्तन ।
ग्रहण करी टा नीक,
करी नै ककरो निन्दन ।।
राखी सोच सकार,
नकारा के जुनि पाली ।
चिन्तन नित अध्यात्म,
मोन नै राखी खाली ।।
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Tuesday, June 14, 2022
श्रेष्ठ
श्रेष्ठ तिनके बुझी जिनकर,
शुद्ध पूत विचार छन्हि ।
पूतता बिन हीन बूझी,
जदपि धन अम्बार छन्हि ।।
जदपि धन अम्बार छन्हि,
याचकके ने भोजन भेटय ।
दीन रहितो पैघ से जे
तुष्ट याचक के करय ।।
उदधि अछि आगार वारिक,
प्यास नै ककरो मेटाबय ।
शुद्ध वारि गँहीर कूपक,
तृषा प्यासल के मेटाबय ।।
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संघर्ष
जै जिनगीमे रौद-घाम नै,
से भ' जाइछ छहरियालप्पा ।
बिना चुनौतीके जिनगी तँ
ठहरल पानि-थालके खत्ता ।।
ठहरल पानि-थालके खत्ता,
कीड़ा-साँप-जोंकके डबरा ।
ने पीबा-स्नाने जोगड़क,
भरिए देब नीक हो तकरा।।
जे जिनगी संघर्ष बिना अछि,
कनिको रस नै तै जिनगीमे ।
व्यर्थे बोझ देहकेर ऊघब,
कोनो रस नै जै जिनगीमे ।।
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नीक लोक
नीक तकरे बुझी जे
निन्दा ने अनकर करय कहियो ।
जदपि अप्पन त्रूटि लघुतम
खेदके प्रगटैछ तइयो ।।
पैघ गलतीयो जँ अनकर
माफ ओ क' दैछ सदिखन ।
मदति अनकर करक, ताकथि-
सुअवसर छोटो ओ सदिखन ।।
मदति यद्यपि करथि, पर-
एहसान नै कहियो जनाबथि ।
जरथि नै अनकर खुशी सँ
जश्न हिरदय सँ मनाबथि ।।
बूझि अनकर भावना, नै-
किमपि ककरो पर हँसै छथि ।
बात अनकर हृदयके
महसूस निज उरमे करै छथि ।।
अपन हृदयक ध्वनिक ओ
आदर सेहो सदिखन करै छथि ।
सत्यके संग देथि आ
बलवान झूठो सँ लड़ै छथि ।।
लेख कविता चित्रकारी
गीत-संगीतोमे रुचि छन्हि ।
सकारात्मक काजमे रत
व्यसन सँ अतिशय अरुचि छन्हि ।।
आत्मविश्वासे भरल आ
बाह्य-अंदर एक छथि,
नीक श्रोता प्रखर वक्ता
नम्र आ किरतज्ञ छथि ।।
प्रकृतिप्रेमी जीवप्रेमी
अहिंसक अतिशय सरल,
नारियल सम बाह्य दृढ़तम
हृदय करुणा सँ भरल ।।
संत :-
संत :-
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सुभोजन तिनका कराबी,
अहाँके जल जे पिऔलनि ।
दण्डवत तिनका करू जे
अहाँ लग सिर के नमौलनि ।।
एक पैसा जे कियो, खर्चा-
केलनि कहियो अहँक लेल ।
मोह नै पैसाक राखी,
सहस्रों खर्ची तिनक लेल ।।
जे करथि उपकार, तिनका
सौ गुना क' क' सधाबी ।
अहाँके जे करथि रक्षा,
प्राण तिनका लए गमाबी ।।
ई त' भेल व्यवहार जगतक,
संत छथि अपवाद एकरो ।
जे करय अपकार हुनकर,
ओ करथि उपकार तकरो ।।
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Sunday, June 12, 2022
भक्तक रक्षाकवच
अनिष्टक भयसँ सशंकित रहै छथि नित लोकसब,
किअए ने मजगूत रक्षाकवच धारथि लोकसब ।
व्यर्थ शंकानिवारण लेल भटकि रहला लोकसब,
किअए ने हरिभक्ति रक्षाकवच धारथि लोकसब ।।
नाम हरिकेर होइत अछि आधार जीवनप्राण भक्तक,
प्रभुक दर्शन लेल प्यासल सतत हिरदय रहय भक्तक ।
हरि सेहो ब्याकुल रहै छथि सतत रक्षा लेल भक्तक,
किमपि नहि ओ सहि सकै छथि कष्ट कनिको अपन भक्तक ।।
हरथि दुष्टक प्राण ओ भक्तेक रक्षा केर खातिर,
होइत छथि अवतार लेबा पर विवश भक्तेक खातिर ।
दौड़िक' आबैत छथि प्रभु द्रोपदीकेर लाज खातिर,
ध्रुवक निर्मल भक्ति आ प्रह्लादकेर रक्षेक खातिर ।।
प्रभुक लेल अमृत सदृश अछि ऐंठ फल शबरी खुआबथि,
सुदामाकेर मित्रता प्रभु नग्न पएरे तुरत धाबथि ।
फलक खोंइचा खा रहल विदुरानि प्रेमें अबस गिरिधर,
छाछ लोभें गोपिकागण प्रेमवश नटवर नचाबथि ।।
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