सबठाँ धृतराष्ट्रे भरल,
न्यायक ने छुइत छै ।
भीष्म द्रोणों मौन धएने,
दुर्योधनेक जुइत छै ।।
दुर्योधनेक जुइत छै,
कुशासने चीर हरय ।
कोना लाज बाँचल रहत,
प्रशासने स्वांग रचय ।।
युवा-भीम उठू झट,
पिशाचे पसरल सबठाँ ।
चीरू छाती ओकर,
दुशासने सबल सबठाँ ।।
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