Tuesday, June 14, 2022

नीक लोक

नीक तकरे बुझी जे निन्दा ने अनकर करय कहियो । जदपि अप्पन त्रूटि लघुतम खेदके प्रगटैछ तइयो ।। पैघ गलतीयो जँ अनकर माफ ओ क' दैछ सदिखन । मदति अनकर करक, ताकथि- सुअवसर छोटो ओ सदिखन ।। मदति यद्यपि करथि, पर- एहसान नै कहियो जनाबथि । जरथि नै अनकर खुशी सँ जश्न हिरदय सँ मनाबथि ।। बूझि अनकर भावना, नै- किमपि ककरो पर हँसै छथि । बात अनकर हृदयके महसूस निज उरमे करै छथि ।। अपन हृदयक ध्वनिक ओ आदर सेहो सदिखन करै छथि । सत्यके संग देथि आ बलवान झूठो सँ लड़ै छथि ।। लेख कविता चित्रकारी गीत-संगीतोमे रुचि छन्हि । सकारात्मक काजमे रत व्यसन सँ अतिशय अरुचि छन्हि ।। आत्मविश्वासे भरल आ बाह्य-अंदर एक छथि, नीक श्रोता प्रखर वक्ता नम्र आ किरतज्ञ छथि ।। प्रकृतिप्रेमी जीवप्रेमी अहिंसक अतिशय सरल, नारियल सम बाह्य दृढ़तम हृदय करुणा सँ भरल ।।

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