Sunday, June 12, 2022

भक्तक रक्षाकवच

अनिष्टक भयसँ सशंकित रहै छथि नित लोकसब, किअए ने मजगूत रक्षाकवच धारथि लोकसब । व्यर्थ शंकानिवारण लेल भटकि रहला लोकसब, किअए ने हरिभक्ति रक्षाकवच धारथि लोकसब ।। नाम हरिकेर होइत अछि आधार जीवनप्राण भक्तक, प्रभुक दर्शन लेल प्यासल सतत हिरदय रहय भक्तक । हरि सेहो ब्याकुल रहै छथि सतत रक्षा लेल भक्तक, किमपि नहि ओ सहि सकै छथि कष्ट कनिको अपन भक्तक ।। हरथि दुष्टक प्राण ओ भक्तेक रक्षा केर खातिर, होइत छथि अवतार लेबा पर विवश भक्तेक खातिर । दौड़िक' आबैत छथि प्रभु द्रोपदीकेर लाज खातिर, ध्रुवक निर्मल भक्ति आ प्रह्लादकेर रक्षेक खातिर ।। प्रभुक लेल अमृत सदृश अछि ऐंठ फल शबरी खुआबथि, सुदामाकेर मित्रता प्रभु नग्न पएरे तुरत धाबथि । फलक खोंइचा खा रहल विदुरानि प्रेमें अबस गिरिधर, छाछ लोभें गोपिकागण प्रेमवश नटवर नचाबथि ।।

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